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सन्नाटा हूँ चौतरफा छाने में,
थोड़ी देर लेता हूँ,
पर जब छा जाता हूँ तब,
मैं सबकुछ घेर लेता हूँ। - १
खंडहरों में बसता है घर मेरा,
वहाँ गीत उदासी के गाता हूँ,
बिछु, साँप, उल्लू आते-जाते,
बाकी खुद को अकेला पाता हूँ। - २
कोई आहट दूर से आती मुझको,
उसे बुलाने रोता - चिल्लाता हूँ,
फिर चार दीवारों से टकराकर मैं,
खुद में चुपचाप समा जाता हूँ। - ३
सन्नाटा हूँ! पर शोर भरा है मुझ में,
ढेर पर बैठो, तुम्हें जरा सुनाता हूँ,
आगे पीछे ऊपर नीचे पाओगे मुझको,
धीरे धीरे पर सबको बहुत सताता हूँ।- ४
चुपकर थामे हाथ सुने महल घूमता हूँ,
शाश्वत नहीं है जीवन याद दिलाता हूँ,
सन्नाटा हूँ मैं पुराने साज अपनाता हूँ,
सन्नाटा हूँ मैं सैकड़ों राज दफनाता हूँ। - ५
- सौरभ वैशंपायन.
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