Saturday, January 15, 2022

"मैं तुझे फिर मिलूँगी" - > "भेट आपुली होईल अवचित"



















मैं तुझे फिर मिलूँगी
कहाँ कैसे पता नहीं
शायद तेरे कल्पनाओं
की प्रेरणा बन
तेरे केनवास पर उतरुँगी
या तेरे केनवास पर
एक रहस्यमयी लकीर बन
ख़ामोश तुझे देखती रहूँगी
मैं तुझे फिर मिलूँगी
कहाँ कैसे पता नहीं

या सूरज की लौ बन कर
तेरे रंगो में घुलती रहूँगी
या रंगो की बाँहों में बैठ कर
तेरे केनवास पर बिछ जाऊँगी
पता नहीं कहाँ किस तरह
पर तुझे ज़रुर मिलूँगी

या फिर एक चश्मा बनी
जैसे झरने से पानी उड़ता है
मैं पानी की बूंदें
तेरे बदन पर मलूँगी
और एक शीतल अहसास बन कर
तेरे सीने से लगूँगी

मैं और तो कुछ नहीं जानती
पर इतना जानती हूँ
कि वक्त जो भी करेगा
यह जनम मेरे साथ चलेगा
यह जिस्म ख़त्म होता है
तो सब कुछ ख़त्म हो जाता है

पर यादों के धागे
कायनात के लम्हें की तरह होते हैं
मैं उन लम्हों को चुनूँगी
उन धागों को समेट लूंगी
मैं तुझे फिर मिलूँगी
कहाँ कैसे पता नहीं

मैं तुझे फिर मिलूँगी!!

- अमृता प्रीतम

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भेट आपुली होईल अवचित
कल्पनेतुनी असेल कदाचित
प्रेरणा बनुनी नव सृजनाची
कागदावरती होईन अंकित
निरखित राहीन मी एकटक
अबोल अगम्य तरी परिचित
भेट आपुली होईल अवचित
कल्पनेतुनी असेल कदाचित

किंवा बनुनी सुर्यशलाका
खुलविन रंग हलका-हलका
त्या रंगांच्या मिठी मधुनी
कागदावरती जाईन पसरत
कसे कुठे मजला नाही ठाऊक
पण तरीही भेट होईल खचित

बनेन अथवा मी कारंजे
ओढ्या मधुनी खळाळते जे
त्या पाण्याचे रूप घेऊनि
जाईन तुझ्या तनुवर घसरत
शीतल सुखदसा अनुभव बनुनी
हृदयी तुझिया जाईन गुंतत
 
नसेल मजला काही ठाऊक
मात्र एक जाणते निश्चित
काळाच्या या असीम पटावर 
सदैव चालेन तुझ्याच सोबत
या देहाच्या राखे संगे
जळून जाई सारे संचित


काळामधल्या क्षणाक्षणापरी 
आठवणींचे धागे मजबूत
त्या धाग्यांना निवडत जाईन
उचलून घेईन त्यांना मोजत
भेट आपुली होईल अवचित
कल्पनेतुनी असेल कदाचित


भेट आपुली होईल अवचित!!

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