Sunday, February 10, 2019

कम्बख्त सच

रात-रात भर करवटों के दौर चलतें  है
पैर अपने आप रास्तों पर निकलते है
अंधेरो की दरारों में झूठ का बीज बोने नहीं देता
कम्बख्त ये सच हमें सोने नहीं देता - १

आईने के सामने जब हम खड़े हो जाते है
रोज कोई नया बेबस चेहरा आईने में पाते है
वक्त  पे लगे वो दाग छुपाने नहीं देता
कम्बख्त ये सच हमें सोने नहीं देता - २

बात निकलती है तो दूर तक जाती है
भरी भिड़ में खुद को अकेला पाती है
उस बात को भीड़ में खोने नहीं देता
कम्बख्त ये सच हमें सोने नहीं देता - ३

जगमगाती दुनिया किस्से बताया करती है
अफसोस भी मुस्कुराके जताया करती है
झूठ का बोज हसते हुए ढोने नहीं देता
कम्बख्त ये सच हमें सोने नहीं देता - ४

कठिन हो जितना सफर हम चल सकते हैं
सच्चाई को जिम्मेदारी का बल दे सकते हैं,
हालात के सामने बेबस होकर रोने नहीं देता
कम्बख्त ये सच हमें सोने नहीं देता - ५

- सौरभ वैशंपायन

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