सुनाने वाला कोई नहीं था,
अँधेरे में परछाई गुम थी,
सपने सारे धुंदले धुंदले,
आँखे भी थोड़ी नम थी।
ऐसे में जो दीप दिखे थे
दीप नहीं वह जुगनू छलते
जुगनू के पीछे भागे गर तो
सही रास्ते कैसे मिलते?
तभी सुनी आवाज़ कोई,
काफी जानी पहचानी थी,
जब हमने सुना गौर से,
दोहरा रही कहानी थी।
कहानी जो दबी थी कभी,
दिल के बंद दरवाजों में,
आने लगी है सुनो सदाए,
अब ऊँची आवाजों में।
दूर हुई हिचकिच - बेचैनी,
मुँह के ताले खोल रहा है,
इतिहास ने बदली करवट,
देखो भारत बोल रहा है।
- - सौरभ वैशंपायन
अँधेरे में परछाई गुम थी,
सपने सारे धुंदले धुंदले,
आँखे भी थोड़ी नम थी।
ऐसे में जो दीप दिखे थे
दीप नहीं वह जुगनू छलते
जुगनू के पीछे भागे गर तो
सही रास्ते कैसे मिलते?
तभी सुनी आवाज़ कोई,
काफी जानी पहचानी थी,
जब हमने सुना गौर से,
दोहरा रही कहानी थी।
कहानी जो दबी थी कभी,
दिल के बंद दरवाजों में,
आने लगी है सुनो सदाए,
अब ऊँची आवाजों में।
दूर हुई हिचकिच - बेचैनी,
मुँह के ताले खोल रहा है,
इतिहास ने बदली करवट,
देखो भारत बोल रहा है।
- - सौरभ वैशंपायन
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