ग्रहण कैसा लगा यकायक?
हर रास्ता अब सुनसान है,
सहमे सहमे से है नुक्कड़,
सहमा हर कूचा हर मकान है।
क्या है ये जो दिखता नहीं?
क्या यह मौत का ऐलान है?
कोई कहे इंसान की गलती,
कोई कहे भगवान है।
कल जहाँ मेले लगे थे,
अब,सिमटा हुआ सामान है,
कल की रोटी के लिए,
किसी की भूख भी हैरान है।
कौन लेकिन गा रहा यह?
जब हर गली वीरान है,
प्रलय के भी लय पे झूमे,
शायद सरफिरा नादान है।
गा रहा है कोई बुलबुल
बहुत सुरीली तान है,
गा रहा है कुछ अनोखा
दे रहा कुछ ज्ञान है
नन्ही चिड़िया हारती नहीं,
जब गरजता तूफान है,
एक तिनका वापस उठालो
फिर जिंदगी आसान है।
- सौरभ वैशंपायन
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